19-01-2009, 07:49 PM
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Re: Share your fav poetry. Muntakhib Ashaar. देखा है जिंदगी को कुछ इतना करीब से
चहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से.
इस रेंगती हयात का कब तक उठाएं बार
बीमार अब उलझने लगे हैं तबीब से.
हर गाम पर है मजमा-इ-उश्शाक मुन्तजिर
मकतल की राह मिलाती है कू-इ-हबीब से
इस तरह जिंदगी ने दिया है हमारा साथ
जैसे कोई निबाह रहा हो रकीब से. Hindi Ki Dictnory Kise Chahiye..? |